वृंदावन की अंतिम पुकार – नीम करौली बाबा की आखिरी लीला

वृंदावन की अंतिम पुकार – नीम करौली बाबा की आखिरी लीला

1973 का वह एक शांत-सा दिन, कुछ असामान्य बेचैनी लेकर आया था। नीम करौली बाबा की तबीयत अचानक बिगड़ गई थी। उन्हें आगरा के अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों की नजर में सब कुछ सामान्य था, पर जो बाबा को जानते थे, वो जानते थे — अब कुछ और चल रहा है

बाबा ने अचानक कहा —
“वृंदावन चलो।”
जैसे कोई अंतर्यामी आवाज उन्हें पुकार रही हो।

ट्रेन मथुरा पार कर वृंदावन की ओर बढ़ी — बाबा बस एक ही बात दोहराते जा रहे थे:
“वृंदावन आया कि नहीं?”
हर बार होश में आकर वही वाक्य। जैसे कोई अपना अंतिम वचन छोड़ रहा हो।

जैसे ही ट्रेन वृंदावन स्टेशन पहुँची — वहाँ पहले से चार लोग स्ट्रेचर लेकर खड़े थे, और बाहर एक टैक्सी भी मौजूद थी। किसी ने खबर नहीं दी थी, फिर भी सब पहले से तैयार।
यह लीला थी। यह योगी का खेल था।

जब बाबा को रामकृष्ण मिशन अस्पताल लाया गया, तो उन्होंने ऑक्सीजन की नली हटा दी और शांत स्वर में बोले —
“हे जगदीश…”
और… सब कुछ थम गया।

उनके साथ उस समय सिर्फ दो लोग थे। और जैसे ही सुबह हुई, बिना किसी तकनीकी साधन के, खबर देशभर में फैल गई। लोग कहते हैं कि ऐसी खबरें चलकर नहीं, दिलो-दिमाग में उतरती हैं

उनका अंतिम संस्कार वृंदावन आश्रम में ही हुआ। अग्नि की लपटों में कई भक्तों ने बाबा की आकृति देखी। कोई चमत्कार कहे, कोई श्रद्धा — लेकिन जिसने देखा, वो आज भी कांप उठता है।

बाबा चले नहीं, वो बस दृष्टि से ओझल हुए हैं
उनकी लीला आज भी जारी है… वृंदावन की गलियों में, भक्तों की सांसों में, और हर “राम-राम” में।